सूर-विनय-पत्रिका -SOOR-VINAY-PATRIKA in hindi online
महाकवि श्रीसूरदास जी के द्वारा विरचित 309 पदों के इस संग्रह में वैराग्य, अनित्यता, विनय, प्रबोध तथा चेतावनी आदि विषयों का सुन्दर वर्णन है।
श्यामसुन्दर के नामरूपी अमृतफल का त्याग कर देते हैं और उन्हें माया का विषैला फल पसंद आता है। ये मूर्ख मलयागिरि के चन्दन की निन्दा करते हैं और शरीर में राख लपेटते हैं। जिसके तट पर हंस विचरण करते हैं, उस मान-सरोवर को छोड़कर कौओं के स्नान करने योग्य सरोवर में वे स्नान करते हैं। ये मूर्ख पैर के नीचे जलती भूमि को तो जानते नहीं, अपने जलते घर को बुझाना छोड़कर (जिसे जल जाना चाहिये उस) कूड़े के ढेर को बुझाते हैं। (अर्थात् त्रिताप में सारा जीवन जल रहा है, यह ध्यान में नहीं आता। अज्ञानवश मनुष्य-जीवन क्षण-क्षण नष्ट हो रहा है, यह नहीं दीखता। भजन करके जीवन सफल करने के बदले सांसारिक भोगों को नष्ट होने से बचाना चाहते हैं, जिन भोगों का नाश होना हितकर ही है।) चौरासी लक्ष योनियों में नाना शरीर धारण करके बार-बार भ्रमण करता हुआ (मूर्ख जीव) यमराज को हँसाता है (मृत्यु का परिहासपात्र बना रहता है)। जगत का सब आचार मृगतृष्णा के जल के समान (मिथ्या) है, उसके संग मन को ललचाया करता (उन आचारों में ही मोहित होकर लगा रहता) है। सूरदास जी कहते हैं- (मनुष्य) संतों के साथ मिलकर श्रीहरि का यश क्यों नहीं गाता (जिससे जीवन सफल हो जाय)।
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